कहानी संग्रह >> पहर दोपहर ठुमरी पहर दोपहर ठुमरीप्रत्यक्षा
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प्रत्यक्षा की कृति ‘पहर दोपहर, ठुमरी’ जिसमें 14 कहानियां संकलित हैं
नि:संदेह रचनाकार प्रत्यक्षा की कृति ‘पहर दोपहर, ठुमरी’ जिसमें 14 कहानियां संकलित हैं, मन वीणा के तारों को झंकृत कर देने वाला अनुपम कहानी संग्रह है।
गद्य रचनाओं में पद्य का आभास कराने वाली ये मर्मस्पर्शी रचनाएं मानव जीवन के प्रत्येक पहलू से जुड़ी हुई हैं। युवावस्था का उन्माद, अतीत के आइने में झांकता बुढ़ापा, स्त्री-पुरुष के संबंधों के धरातल पर कल्पना की उड़ान भरते कलरव करते मन-पंछी, टूटते-बिखरते-साकार होते सपने, मानव मन में उदीप्त प्रेम, वेदना, अंतर्वेदना, हर्ष, विषाद, अवसाद व संवेदनाओं के क्षणों को एक सूत्र में पिरोने का विदुषी लेखिका प्रत्यक्षा का यह एक अनूठा प्रयास है।
कहानी संग्रह की प्रथम रचना ‘बलमवा तुम क्या जानो प्रीति’ में पुराने प्रेम की स्मृतियां हैं। ‘कूचा-ए-नीमकश’ कहानी ज़िन्दगी से मार खाये चेहरों की तस्वीर है। इसी तरह पांच उंगलियां पांच प्यार में, ‘अंधेरे में लाइटहाउस’, ‘मछली और सुख’, ‘जिन्दगी कितनी हसीन है’, ‘बाथटब, आदमी और कनगोजर व मायोपिक प्रेम’ जैसी कहानी के प्रभाग हैं जिनमें बेइंतहा प्यार की नदी कल-कल बहती है। ‘शारुख शारुख! कैसे हो शारुख’ में मिशन के छोटे अस्पताल और मरीजों तथा उनके सगे संबंधियों के जीवन-वृत्त का सजीव चित्रण है। ‘ललमुनिया, हरमुनिया’ कहानी में जहां ‘हमारी अटरिया पे आजा सांवरिया’ तथा लहक-लहक कर गाती औरतें ‘बन्नो तेरा मुखड़ा चांद जैसा’ के मध्य विवाह की रस्मों और रीति-रिवाजों का बसेरा है वहीं ‘केंचुल’ में बेटी का पिता से अतिशय प्रेम व मां के अवैध संबंधों के कारण मां से नफरत स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।
कहानी संग्रह में देश-काल व परिस्थिति के अनुरूप सरल, सरस व सुबोध शैली तथा अंग्रेजी व उर्दू भाषा के शब्दों व वाक्यांशों के यथोचित प्रयोग से कहानियां और भी सशक्त व जीवन्त हो गयी हैं। प्रस्तुत पुस्तक पठनीय तथा संग्रहणीय है।
गद्य रचनाओं में पद्य का आभास कराने वाली ये मर्मस्पर्शी रचनाएं मानव जीवन के प्रत्येक पहलू से जुड़ी हुई हैं। युवावस्था का उन्माद, अतीत के आइने में झांकता बुढ़ापा, स्त्री-पुरुष के संबंधों के धरातल पर कल्पना की उड़ान भरते कलरव करते मन-पंछी, टूटते-बिखरते-साकार होते सपने, मानव मन में उदीप्त प्रेम, वेदना, अंतर्वेदना, हर्ष, विषाद, अवसाद व संवेदनाओं के क्षणों को एक सूत्र में पिरोने का विदुषी लेखिका प्रत्यक्षा का यह एक अनूठा प्रयास है।
कहानी संग्रह की प्रथम रचना ‘बलमवा तुम क्या जानो प्रीति’ में पुराने प्रेम की स्मृतियां हैं। ‘कूचा-ए-नीमकश’ कहानी ज़िन्दगी से मार खाये चेहरों की तस्वीर है। इसी तरह पांच उंगलियां पांच प्यार में, ‘अंधेरे में लाइटहाउस’, ‘मछली और सुख’, ‘जिन्दगी कितनी हसीन है’, ‘बाथटब, आदमी और कनगोजर व मायोपिक प्रेम’ जैसी कहानी के प्रभाग हैं जिनमें बेइंतहा प्यार की नदी कल-कल बहती है। ‘शारुख शारुख! कैसे हो शारुख’ में मिशन के छोटे अस्पताल और मरीजों तथा उनके सगे संबंधियों के जीवन-वृत्त का सजीव चित्रण है। ‘ललमुनिया, हरमुनिया’ कहानी में जहां ‘हमारी अटरिया पे आजा सांवरिया’ तथा लहक-लहक कर गाती औरतें ‘बन्नो तेरा मुखड़ा चांद जैसा’ के मध्य विवाह की रस्मों और रीति-रिवाजों का बसेरा है वहीं ‘केंचुल’ में बेटी का पिता से अतिशय प्रेम व मां के अवैध संबंधों के कारण मां से नफरत स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।
कहानी संग्रह में देश-काल व परिस्थिति के अनुरूप सरल, सरस व सुबोध शैली तथा अंग्रेजी व उर्दू भाषा के शब्दों व वाक्यांशों के यथोचित प्रयोग से कहानियां और भी सशक्त व जीवन्त हो गयी हैं। प्रस्तुत पुस्तक पठनीय तथा संग्रहणीय है।
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